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krishna ब्रह्म मंदिर है यहां भूत प्रेत की वीडियो है तंत्र मंत्र मंदिर है। यह
टेंपल ओपन होती है 4.३०बजे से 9.00 बजे तक किराया यह करकट में 300 रुपया रहने का चार्ज लगता है।
कृष्ण ब्रह्म में लाल मंदिर है इसमें पूजा की जाती है।
ब्रह्मा जी की पुराण कथा
ब्रह्माजी कहते हैं--गौतमी गड्जाके ठउत्त- होम-सब अक्षय होता है; इसलिये उन्होंने
तटपर पूर्णतीर्थ है। वहाँ यदि मनुष्य अनजानमें | गज्गा-सागर-संगमपर भारी तपस्या आरम्भ की।
नहा ले तो भी कल्याणका भागी होता है। एक बार राजा धत्यन्तरिने राज्य करते समय
चूर्णतीर्थके महात्म्यका वर्णण कौन कर सकता है, | एक महान् असुरको रणभूमिसे मार भगाया था।
जहाँ स्वयं चक्रधारी भगवान् विष्णु और पिनाकधारी . उसका नाम था तम। वह एक हजार वर्षोतक
भगवान् शंकर निवास करते हैं। पूर्वकालमें | राजाके भयसे समुद्रमें छिपा रहा। जब उसे मालूम
आयुके पुत्र पन््वन्तरि राजा थे। उन्होंने अश्वमेष | हुआ कि राजा धन्यन्दरि विरक होकर वनमें चले
आदि अनेक प्रकारके यज्ञॉका अनुष्ठान किया, | आये हैं और उनका पुत्र राज्यसिंहासनपर आसीन
भाौति- भाँतिके दान दिये दथा प्रचुर भोग भोगे। हुआ है, तब वह सपुद्रसे निकला और उस
फिर भोगोंकी विषमताका अनुभव करके उन्हें | स्थानपर आया, जहाँ महाराज धन्वस्तरि गज्जावटका
बड़ा वैराग्य हुआ। धन्वन्तरि यह जानते थे कि। आश्रय ले जप और होममें संलग्न तथा ब्रह्मचिस्तनपें
पर्वतके शिवरपर, गड्भा नदीके किनारे, समुद्रके | तत्पर थे। उसने सोचा, 'इस बलवान् राजाने मुझे
तटपर, शिव और विष्णुके मन्दिरमें अथवा विशेषत: | अनेक बार तष्ट करनेका प्रयत्न किया है, अत: मैं
किसी पवित्र संगमपर किया हुआ जप, ठप, भी क्यों न अपने इस शत्रुको नष्ट कर डालूँ।'
ऐसा निश्चय करके उसने मावासे एक स्त्रीका | जोड़कर बोले--' ब्रह्मनू। क्या करूँ? तपस्याके
रूप बनाया और राजाके पास आया। यह | पार कैसे जाकैं ?' मैंने उत्तर दिया-' देवाधिदेव
मायामयी सुन्दरी तरुणी देखनेमें बड़ी मनोहर | जनार्दनकी यलपूर्वक स्तुति करो। उससे तुम्हें
थी। उसने हँसते हुए नाचना और गाना आरम्भ | सिद्धि प्रात होगी। भगवान् विष्णु बेदवेद्य पुरातन
किया। उस सुन्दरीको बहुत समयतक इस अवस्थामें | परमात्मा हैं। उन्होंने ही सम्पूर्ण जगत्को सृष्टि की
देख राजाने कृपापूर्वक पूछा--'कल्याणी! तुम | है। तीनों लोकॉमें उनके सिवा दूसरा कोई पुरुष
कौन हो ? किसके लिये इस गहन वनमें निवास | ऐसा नहीं है, जो प्राणियोंके समस्त मनोरथोंकी
करती हो और किसे देखकर तुम्हें इतना |सिद्धि कर सके।' मेरी आज्ञा मानकर राजा
उल्लास-सा हो रहा है?' धन्वन्तरि गिरिराज हिमालयपर चले गये और
त्तरुणी ओोली--राजन् ! आपके रहते संसारमें [ वहाँ दोनों हाथ जोड़कर भक्तिपूर्वक भगवान्
दूसरा कौन है, जो मेरे उल्लसका कारण हो सके। | विष्णुकी स्तुति करने लगे।
मैं इन्द्रकी लक्ष्मी हूँ। आपको सब भोगोंसे सम्फा | आफ:
देख बारंबार आपके सामने विचरती हूँ। असंछय | चीज |
पुण्यके बिना में सभीके लिये अत्यन्त दुर्लभ हूँ।।
उसकी यह बात सुनकर राजाने वह
कठोर तपस्या त्याग दी और मन-हो-मन उसीका बा
चिन्तन करने लगे। उसीके आश्रय तथा उसीके |
आज्ञा-पालनमें रहने लगे। जब सब तरहसे वे य का ।
एकमात्र उसीकी शरणमें चले गये तब उनकी हे ते
भारी तपस्थाका नाश करके तम अन्तर्धान हो हैं, |
गया। इसी जीचमें मैं राजाको वर देनेके लिये है रन कक
गया। वे तपोध्रष्ट एवं विहल होकर मृतकके : पन्ना
समान रो रहे थे। मैंने अनेक प्रकारकी युक्तियोंसे |
महाराज धन्वन्तरिको सान््सना दी और कहा-- अप कक
राजन! तुम्हारा शत्रु तम तुम्हें तपस्यासे भ्रष्ट कके |
कृतकार्य होकर चला गया। तुम्हें शोक नहीं |. धन्वन्तरि बोले--सर्वत्र व्याप्त रहनेवाले विष्णो !
करना चाहिये। प्राय: सभी तरुणी स्त्रियां पुरुषको | आपकी जय हो | अचिन्त्य परमेश्वर! आपकी जय
पहले कुछ आनन्द और पीछे भारी संताप देती हैं, हो। विजयशील अच्युत! आपकी जय हो।
फिर यह तो मायामयो थी; अतः उसका संतापप्रद | गोपाल! आपकी जय हो। लक्ष्मीके स्वामी,
होना क्या आश्चर्यकी बात है।* जगन्मय श्रीकृष्ण! आपकी जय हो। भूतपते!
तब राजा धन्यन्तरिका भ्रम दूर हुआ। वे हाथ | आपकी जय हो। नाथ! आपकी जय हो। आप
का ० आनन्दयन्ति भचरमदास्तापवत्ति च मानव् ।
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