Shree Krishna Janmashtami Vrat Katha , Vrat Pujan Vidhi ,puran katha |pujan विधि 2022


krishna janmshtami



Shree Krishna Janmashtami Vrat Katha , Vrat Pujan Vidhi ,puran katha



ज्यों जपः। इस मन्ससे योगेश्वर भगवा] श्रीकृष्णका ध्यान

कर  ग्रज्ञाय गरजे श्गाय चनज़फापे पज्सम्धक्राथ फ्ेथिन्दाप

क्यों मम्र:।' इच्च शलसे उजकं ज्वाज कराना चाहिये।

उसके जाद  चवियस्वाव सिश्येद्वराय विश्फ्तपे

विशसायावाश गोौडिज्ायथ क्यों बय:' इस सख्से वोहरिकी

धूृजा करनी चाहिये। तत्पन्नातु-- 3५ जर्वाष सर्लेश्षराप

जअर्वप्तों सर्वत्ाप्पस्ायाय गोडिन्टाय नपों भगः।' इस मन्खसे

जलें क़यन कराना चाहियें।

स्भण्डि (चेदो)-में चन्रमा और रॉोहिणीके साथ

भगवान्‌ कुष्णकी घृजा करे। पृष्य, फल और चचडनसे युक्त

जलकों शंख लेकर अपने टोनों पुटनॉकों प्रशिवोसे लगाते

हुए चन्रमाकों निन मन्रद्वारा आर्ष्य प्रदान करैं--

क्षीरोदार्णव्ताथपुतर अधिषच्रत्तपुस्ूत ॥

शहाणाज््य॑ शजाड्रेश ेहिण्या समिंगों मम।


है क्षीरसारसे उत्फ्ना देख! है अभ्निमुनिके नेतजसे

सपुद्धंत! है चन्द्ररेश | रोहिणीदेवीके साथ मेरे हारा प्रदत्त

इस अध्यको जाप स्थोज्तार करें।

तदनन्तर बज्रत्नोकों महालक्ष्मो, वशुदेस, नन्‍दर, ग्रलशप,

ये देय जो अनन्त, सामन, फौरि, वैकुण्एनाम, पृरुषोशप,

कसुदेव, इषोकेश, माधव, मधुस्ुदत, बराह, पुण्डरीकाक्ष,

नृस्मिंह्र, दैत्यसूदत, दामोदा, 'पंद्मनाभ, केशव, ग्ररडाप्सज,

गोचिन्द, अध्युत, अनन्तदेव, अपगाजित, अधोक्षज, जगदयबोज,

सर्गस्थित्यनकारण, अनादिनिधन, थिष्णुं, फित्ोंकेश, प्रियिक़म,

गारायण, चतुर्भज, शद्बकरांदाधर, पीताम्बरधारों, दिव्य,

वनफकालासे सिंधूषित, श्रोवत्साडु, जगड़ाप, श्रोपति और

व्रीपग्दि नामसे प्रप्तिद्ध हैं, जिमकों देवकीसे असुदेशने

उत्पन्र किया है, जो पृष्ष्धोपर निवास करेनेयाले बज्राह्मणोकों

रक्षाक: लिये संसारमेँ अवतरित होते हैं, उन ऋ्राप्रूप

भगवान्‌ श्रोकृष्णकों मैं नमन करता हूँ।


कुस प्रकार भगवामके तापोंका स्रंकीर्तन करके अपनों!


ये देय जो अनन्त, सामन, फौरि, वैकुण्एनाम, पृरुषोशप,

कसुदेव, इषोकेश, माधव, मधुस्ुदत, बराह, पुण्डरीकाक्ष,

नृस्मिंह्र, दैत्यसूदत, दामोदा, 'पंद्मनाभ, केशव, ग्ररडाप्सज,

गोचिन्द, अध्युत, अनन्तदेव, अपगाजित, अधोक्षज, जगदयबोज,

सर्गस्थित्यनकारण, अनादिनिधन, थिष्णुं, फित्ोंकेश, प्रियिक़म,

गारायण, चतुर्भज, शद्बकरांदाधर, पीताम्बरधारों, दिव्य,

वनफकालासे सिंधूषित, श्रोवत्साडु, जगड़ाप, श्रोपति और

व्रीपग्दि नामसे प्रप्तिद्ध हैं, जिमकों देवकीसे असुदेशने

उत्पन्र किया है, जो पृष्ष्धोपर निवास करेनेयाले बज्राह्मणोकों

रक्षाक: लिये संसारमेँ अवतरित होते हैं, उन ऋ्राप्रूप

भगवान्‌ श्रोकृष्णकों मैं नमन करता हूँ।


brahm ji ह्माजीने कहा--हे ब्रह्मन! भाद्फ्टमासमें शुकतपक्षकी

अ्टपी तिधिको दूर्साष्टमौत्रत होता है। इस दिन उपयासस

उहकर दुर्यासे गौरी-गणेशक्की और शिवकोी फल-पृष्प

आदिसे पुजां कानी आहियें। 'फात, धात्य अधि सभी

प्रयोग्य वस्तुओंसे “झ्ञम्भवे जय:, शिवाय भय: कहकर

क्षिवका पूजन करे। रदनन्तर "स्व दूर्लेडमुलजन्माप्ति" इस

मनसे दुर्शाकी पुजा करती चाहिये। ऐसा कानेसे यह

अश्मीबत निश्चित ही साधककों सर्वस्थ प्रदात कर देता है।

इस ज़तमें जो आअत्निर्में न पकायें गये षरदार्थोंका भोजन

करता है, वह अद्यहत्याके पापसे पृछ हो जाता है।

इसी भाद्रपदके कुृण्णपक्षकी अच्टवी 'तिथिकों

अर्द्धग़त्रिमें रोहिणों नक्षत्रों भगवान्‌ हरिकी पुजाका विधान

है। यह श्रीकृष्णजन्माएमीवत कहलाता है। सप्तमी तिथिसे

विद्ध अश्मी तिथि भी सत्के सोग्य होतो है। इस

प्रकारके अश्मोका व्रत करनेसे प्राणीके तीने जमे पाप

नह हो जाते हैं। अत: उपवास रखकर मन्तसे भगवान्‌

जुरिकी पूजा करके तिथि और नक्त्रफ्रे अत्तमें पारणा

कानी चाहियें।

इस प्रकार देवताओंके त्रचन सुनकर भगवान्‌

विष्णु और शिबने दैत्योंपर बड़ा क्रोध किया।

उनकी भौंहें तन गया और मुँह डेड़ा ही गया॥ 

तब अत्यन्त कोपमें भरे हुए चक्रपाणि श्रीविष्णुके

मुखसे ४क मड़ाय्‌ तेज प्रकट हुआ। इसी प्रकार

ब्रह्मा, शंकर तथा इन्द्र आदि अग्या-य दरेयताओअकि

शरीरसे भी बड़ा 'भारों तेज तिकला। वह सब

मिलकर एक हो गया॥ मगहान्‌ तेजका

बह पुृञ्ञ जाज्वल्यपाउ पर्वत सा जान पडा। देवताओंने

देखा, चहों उसकी ज्वालाएँ सम्पूर्ण दिशाओंमें व्याप्त

हो सही थीं॥ सप्पूर्ण देवताओंके शरीरसे प्रकट

हुए उस तेजकों कहाँ तुलना नहीं श्री। एकत्रित

होंतेपर बह एक नारीके रूपमें परिणत हो गबा

ओर अपने ग्रकाशसे तोनों लोकोंमें व्याप्त जान

पड़ा॥

भगवान शंकरका जौं तेज था, उससे

उस देवीका मुख प्रकट हुआ। अमण्जके तेजसे

उसके सिरमें जाल दिकल आखे। श्रीविष्णुभगवानके

तेजमे ठसकी भुज्ाएँ उत्पन हुई॥