ganesh ji puja bhidhi,aarti, कहानी पूरा पौराणिक कथा 


ganesh





पौराणिक आख्यानों के अनुसार जीवन के

मंगल कारक कहा जाता है। कामना गणपति मंगलकारी देवता क्यों हैं..


मंगलमूर्ति की वजह से धरती पुत्र मंगल

के जीवन में उत्साह का सृजन हुआ था  मंगलमूर्ति यानी गणेश पृथ्वी से सीधा संबंध रखते

हैं। मान्यता है कि पृथ्वी के पुत्र मंगल के अंदर

गणपति की वजह से ही उत्साह का सृजन हुआ था।

० अलग-अलग युगों में गणेश के अबतारों ने संसार

के शोक व संकट का नाश कर उत्साह पैदा किया।

भगवान गजराज संदेश देते हैं, कम बोलें,

कम अपेक्षा रखें, तभी उन्नति संभव है गणपति के बड़े पेट से ज्ञान मिलता है कि रहस्य

खुद तक रखें। सूप जैसे कान संदेश देते हैं कि सबकी

सुनें, किंतु अविचल बने रहें।

» गणपति के छोटे मुख से तात्पयं यह है कि हम कम

बोलें और कम अपेक्षा रखें, तभी प्रगति संभव है।



यह गणेशोत्सव बेहद खास हे। 2 साल और कष्ट मूलाधार चक्र के स्वामी 


करता है कि देश और समाज के लिए गणे

गणपति सभी दिशाओं के स्वामी, इनकी

आज्ञा के बिन पूजा में नहीं जाते देव


० गणपति सभी दिशाओं के स्वामी हैं। इनकी आज्ञा


के बिना देवता पूजा स्थल पर नहीं पहुंचते। पहले वे

दिशाओं की बाधा दूर करते हैं, फिर पहुंचते हैं।


» यही कारण है कि किसी भी देवी-देवता की पा से

फहले भगवान गणपति का अद्यन किया जाता है।

मुक्तिदायी सिद्धि विनायक के पूजन से

नवग़हों के दोष भी दूर हो जाते


० ज्योतिषशास्त्र में धन, ऐश्वर्य व संतान के स्वामी

गणेश हैं, जबकि इन क्षेत्रों के ग्रह शुक्र हैं। उनसे गुरु

समेत सभी ग्रह संतुष्ट रहते हैं।


० इसलिए उनकी उपासना नवग्रहों के दोष से मुक्ति
दिलाती है। हर मनोकामना पूरी करते हैं।

जणेश में नारायण और उनकी पतली

रिद्वि-सिद्धि में मां लक्ष्मी का वास है


० गणपति में भगवान नारायण और उनकी पलिलयों

रिद्धि-सिद्धि में मां लक्ष्मी का वास है। रिद्धि का

तात्पर्य वृद्धि यानी लाभ व सिद्धि का शुभता से है

० इसलिए गणपति पूजन से मां लक्ष्मी रूपी रिद्धि-

सिद्धि का जीवन में आना ही मंगल सूचक है।

इसलिए विछहर्ता और मंजलकारी हैं


० गणेश बुध ग्रह के अधिपति व बुद्धि-विवेक के देः

हैं, जहां बुद्धि-विवेक हो, वहां अमंगल नहीं होता।


* इसलिए मान्यता है श्री गणेश स्मरण से मिली व

और विवेक से ही व्यक्ति अपार सुख, धन और ल॑

आयु प्राप्त करता है। इसलिए गणपति मंगलकारी हैं।


जजानन अशुभ-अमंगल का नाश करके

जीवन में ऐश्वर्य और समृद्धि लाते हैं


० गणपति अशुभ व अमंगल नाशक देव हैं।



 अमंगल के साथ अशुभता के विनाश से ही जीवन में संपत्ति,

ऐश्वर्य और खुशहाली का संग्रह संभव है।

 इसलिए गणेश मंगल के समान शक्तिशाली हैं।

उनके पूजन से साहस, पद व प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।

एकदंत के हर अंग में खुशहाल जीवन का

राज, वाहन मूषक भी परिश्रम का प्रतीक

० गणपति का हर अंग हमें कर्म के लिए प्रेरित करता

है। विशाल गज मस्तक हमें यह मार्ग दिखाता है कि

संसार में पूजनीय वही है, जो बुद्धिमान है।


० वाहन मृषक हमेशा परिश्रम में लगा रहता है। इसलिए

उन्नति वहीं करता है. जो अनवरत परिश्रप करता है।


मोहासुर नाम का एक राक्षस था, उसने देवताओं को

स्वर्ग से निकाल दिया और स्वर्ग पर अधिकार कर लिया

था। सभी देवताओं की मदद करने के लिए गणेश जी

ने महोदर रूप धारण किया। महोदर यानी बड़े पेट वाले

गणेश जी ने मोहासुर को पराजित कर दिया था। इस

स्वरूप का संदेश ये है कि हमें मोह से बचना चाहिए।

वक्रतुंड अवतार

एक राक्षस था मत्सरासुर, वह शिव जी का परम भक्त

था। मत्सरासुर ने अपने पुत्र सुंदरप्रिय और विषयप्रिय के

साथ देवताओं को हरा दिया था। इसके बाद गणेश जी

ने वक्रतुंड अवतार लिया और असुर के साथ ही उसके

पुत्रों का वध कर दिया। मत्सर भी एक अवगुण है। मत्सर

यानी दूसरों के सुख को देखकर जलना। हमें इस बुराई

से बचना चाहिए।

एकदंत अवतार

जब मद नाम के राक्षस ने आतंक मचाया तो गणेश जी



विकट अवतार

विकट अवतार लेकर गणेश जी ने कामासुर नाम के

दैत्य का वध किया था। इस स्वरूप में गणेश जी मोर पर

विराजित रहते हैं। काम यानी कामवासना। इस बुराई से

किसी भी व्यक्ति जीवन बर्बाद हो सकता है।

गजानन अवतार

इस अवतार में गणेश जी ने लोभासुर नाम के राक्षस को

मारा था। लोभासुर यानी लालच। इस बुराई की वजह से

व्यक्ति गलत काम करने में भी पीछे नहीं हटता है। इस

बुराई से बचना चाहिए।

लंबोदर अवतार

क्रोधासुर नाम के राक्षस का वध करने के लिए गणेश जी

ने लंबोदर स्वरूप में अवतार लिया था। क्रोधासुर यानी

गुस्सा। गणेश जी की भक्ति से हम अपने क्रोध को जीत

सकते हैं।

धूम्रवर्ण अवतार

अहंतासुर को खत्म करने के लिए गणेश जी ने धूम्रवर्ण

अवतार लिया था। इस स्वरूप में गणेश जी का रंग धुंए.

विकट अवतार

विकट अवतार लेकर गणेश जी ने कामासुर नाम के

दैत्य का वध किया था। इस स्वरूप में गणेश जी मोर पर

विराजित रहते हैं। काम यानी कामवासना। इस बुराई से

किसी भी व्यक्ति जीवन बर्बाद हो सकता है।


गजानन अवतार

इस अवतार में गणेश जी ने लोभासुर नाम के राक्षस को

मारा था। लोभासुर यानी लालच। इस बुराई की वजह से

व्यक्ति गलत काम करने में भी पीछे नहीं हटता है। इस

बुराई से बचना चाहिए।


लंबोदर अवतार


क्रोधासुर नाम के राक्षस का वध करने के लिए गणेश जी

ने लंबोदर स्वरूप में अवतार लिया था। क्रोधासुर यानी

गुस्सा। गणेश जी की भक्ति से हम अपने क्रोध को जीत

सकते हैं।


धूम्रवर्ण अवतार


अहंतासुर को खत्म करने के लिए गणेश जी ने धूम्रवर्ण

अवतार लिया था। इस स्वरूप में गणेश जी का रंग धुंए.

 अगस्त को गणपति आ रहे हैं। आप भी घरों में
पूजा की तैयारी कर रहे होंगे, स्थापना के लिए सजावट
के लिए सोच रहे होंगे। गणेश पूजा को लेकर ज्यादातर
लोगों के दिमाग में ये 10 सवाल जरूर उठते हैं....

1. सबसे पहले गणपति पूजन क्यों जरूरी है?

2. गणेश जी को दूर्वा क्यों चढ़ाते हैं?

3. कलश की पूजा क्यों की जाती है?

4. गणपति जी को तुलसी क्‍यों नहीं चढ़ाते हैं?

5. गणेश जी को चावल क्‍यों चढ़ाते हैं?

6.गणेश जी का एक दांत टूटा क्‍यों है?

7. रंगोली क्‍यों बनाते हैं?

8. फूल-पत्तियों से घर क्यों सजाते हैं?

9. गणपति जी को मोदक क्‍यों पसंद हैं?

10, गणेश जी बड़े शरीर वाले हैं, लेकिन उनका वाहन

छोटा सा चूहा क्‍यों है?

11. 

क्या ये सभी सवाल सिर्फ धर्म से जुड़े हैं या इनके पीछे

 गणेश पूजा को लेकर ज्यादातर

लोगों के दिमाग में ये 10 सवाल जरूर उठते हैं....


1. सबसे पहले गणपति पूजन क्यों जरूरी है?


2. गणेश जी को दूर्वा क्यों चढ़ाते हैं?


3. कलश की पूजा क्यों की जाती है?


4. गणपति जी को तुलसी क्‍यों नहीं चढ़ाते हैं?


5. गणेश जी को चावल क्‍यों चढ़ाते हैं?


6. रंगोली क्‍यों बनाते हैं?


7. फूल-पत्तियों से घर क्यों सजाते हैं?


8. गणपति जी को मोदक क्‍यों पसंद हैं?


9, गणेश जी बड़े शरीर वाले हैं, लेकिन उनका वाहन

छोटा सा चूहा क्‍यों है?


10. गणेश जी का एक दांत टूटा क्‍यों है?

क्या ये सभी सवाल सिर्फ धर्म से जडे हैं या टनके पीछे

इसकी छोटी-छोटी गांठें पूजा में चढ़ाते हैं।अनलासुर नेइंद्र को युद्ध में . हरा दिया तो गणेश जी ने सभी

देवताओं को बचाने के लिए इस राक्षम को निगल लिया, ...

जिससे उनके पेट में जलन होने लगी, तब ऋषि कश्यप ने

उन्हें खाने के लिए दूर्वा की गांठें बनाकर दे दीं। दूर्वा खाते ही

भगवान के पेट की जलन खत्म हो गई। तब से ही गणेश

जी को दूर्वा चढ़ाते हैं।


डाइजेशन ठीक रखता है दूर्वा का रस

गणेश जी को तो दूर्वा चढ़ाते ही हैं, लेकिन अगर हम भी इसे दवा

के रूप में खाएंगे तो पित्त से जुड़ी बीमारियां दूर रहेंगीं।

दूर्वा का रस गैस, एसिडिटी, इनडाइजेशन, कब्ज जैसी दिककतें

दूर करता है। दूर्वा का रस पीने से महिलाओं की पीरियड्स

से संबंधित समस्याएं दूर होती हैं।

किसी को पाइल्‍स हो तो दूर्वा से राहत मिलती है।


हरा दिया तो गणेश जी ने सभी के लिक्षम को निगल लिया, ..पेट में जलन होने लगी, तब ऋषि कश्यप ने

उन्हें खाने के लिए दूर्वा की गांठें बनाकर दे दीं। दूर्वा खाते ही

भगवान के पेट की जलन खत्म हो गई। तब से ही गणेश

जी को दूर्वा चढ़ाते हैं।

 

डाइजेशन ठीक रखता है दूर्वा का रस
गणेश जी को तो दूर्वा चढ़ाते ही हैं, लेकिन अगर हम भी इसे दवा

के रूप में खाएंगे तो पित्त से जुड़ी बीमारियां दूर रहेंगीं।

दूर्वा का रस गैस, एसिडिटी, इनडाइजेशन, कब्ज जैसी दिककतें

दूर करता है। दूर्वा का रस पीने से महिलाओं की पीरियड्स

से संबंधित समस्याएं दूर होती हैं।

किसी को पाइल्‍स हो तो दूर्वा से राहत मिलती है।



गणपति जी कोतुलसी क्‍योंनहीं चढ़ाते हैं? 

गणेश जी और तुलसी से

जुड़ा एक किस्सा है। तुलसी राजा

धर्मात्मज की पुत्री थीं। तुलसी गणेश जी को जीवन साथी

बनाना चाहती थीं, लेकिन गणेश जी ने कहा कि मुझे विवाह

ही नहीं करना है।ये बात सुनकर तुलसी गुस्सा हो गई और गणेश जी को

शाप दे दिया कि आपके दो विवाह होंगे।

तुलसी के शाप के जवाब में गणेश जी ने भी उसे शाप दे दिया कि

एक असुर तुम्हारा जीवन साथी बनेगा।

बाद में गणेश जी का विवाह रिद्धि-सिद्धि से हुआ और तुलसी

का विवाह शंखचूड़ असुर से हो गया।

तुलसी ने गणेश जी को शाप दिया था, इस वजह से भगवान

ने तुलसी को अपनी पूजा में उपयोग करने के लिए

प्रतिबंधित कर दिया। तभी से गणेश पूजा में तुलसी नहीं चढ़ाते हैं गणेश जी को दूर्वा चढ़ाते हैं, लेकिन तुलसी नहीं चढ़ाते हैं,

क्योंकि इन दोनों के गुण एकदम अलग हैं। दूर्वा शरीर की

गर्मी शांत करती है, जबकि तुलसी शरीर में गर्मी बढ़ाती है,

क्योंकि इसमें पारा धातु होती है। गणेश जी को ऐसी चीजें ही

चढ़ाई जाती हैं, जो शरीर की गर्मी को शांत करती हैं।


चावल का उपयोग. क्यों होता है

क्यों होता है?

चावल पर गणेश प्रतिमा स्थापित की जाती है।

चावल को अक्षत भी कहते हैं। अक्षत यानी जो कभी खत्म

नहीं होता है। चावल का खास गुण है, ये जितना पुराना होता है,

इसके गुण उतने बढ़ते जाते हैं।

पूजा में अक्षत चढ़ाने का अर्थ यह है कि समय के साथ हमारी

भक्ति बढ़ती रहे।


चावल अपने गुणों की वजह से मुख्य धानों में से एक है और

धान से धन मिलता है। चावल में कई विटामिंस और मिनरल्स

होते हैं जो कि हमारी सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं।

इसका सफेद रंग शांति का प्रतीक है। चावल चढ़ाकर भगवान

से प्रार्थना की जाती है कि हमारा मन हमेशा शांत रहे और

सभी काम बिना बाधा के पूरे हो जाएं।


रंगोली हे & के 

रंगोली बनाने से की

हमें क्या फायदा


आम, अशोक के पत्ते और फूलों से

सजावट क्‍यों करते हैं ?

गणेश जी के स्वागत के लिए घर के बाहर आम,

अशोक के पत्तों की बंदनवार बांधते हैं।

पत्तों और फूलों को धागे में पिरोकर बंदनवार बनाते हैं।

इसे मेन डोर पर ऊपर की ओर बांधा जाता है और घर को

अलग-अलग सुगंधित फूलों से सजाया जाता है।

फूल-पत्तियों से घर का वातावरण प्राकृतिक बनता है,

पॉजिटिविटी बढ़ती है। फूलों और पत्तियों के रंग आंखों को

सुकून देते हैं। फूलों की महक और रंगों से हमारे दिमाग में

हैप्पी हॉर्मोन्स रिलीज होते हैं, जिनकी वजह से मन शांत


होता है और खुशी मिलती है।

दो मान्याएं हैं। पहली, देवी पार्वती बाल गणेश को

मोदक खासतौर पर खिलाती थीं। दूसरी मान्यता, एक बार

माता अनुसूडया ने गणेश जी को खाने पर बुलाया।

बहुत खाने के बाद भी भगवान का पेट नहीं भर रहा था।

अनुसूड़या थक चुकी थीं, अंत में उन्होंने मोदक बनाए और

मोदक खाते ही गणेश जी तृप्त हो गए। इन दो मान्यताओं की

वजह से गणेश जी को मोदक चढाते हैं।


आम, अशोक के पत्ते और फूलों से

सजावट क्यों करते हैं?गणेश जी के स्वागत के लिए घर के बाहर आम,

अशोक के पत्तों की बंदनवार बांधते हैं।

पत्तों और फूलों को धागे में पिरोकर बंदनवार बनाते हैं।

इसे मेन डोर पर ऊपर की ओर बांधा जाता है और घर को

अलग-अलग सुगंधित फूलों से सजाया जाता है।

फूल-पत्तियों से घर का वातावरण प्राकृतिक बनता है,

पॉजिटिविटी बढ़ती है। फूलों और पत्तियों के रंग आंखों को

सुकून देते हैं। फूलों की महक और रंगों से हमारे दिमाग में

हैप्पी हॉर्मोन्स रिलीज होते हैं, जिनकी वजह से मन शांत

होता है और खुशी मिलती है।

गणेश जी का एक दांत टूटा क्यों है? है

परशुराम जी और गणेश जी |से जुड़ी घटना है। परशुराम हद!

जी भोलेनाथ से मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे। उस ्््ः

समय शिव जी ध्यान में थे तो गणेश जी ने उन्हें बाहर ही रोक दिया।

जब परशुराम जी को रोका गया तो उन्होंने गुस्से में अपने फरसे

से गणेश जी पर वार कर दिया। फरसा शिव जी ने उन्हें दिया था,

इस कारण गणेश जी ने उनका वार नहीं रोका और अपने एक

दांत पर झेल लिया, जिससे दांत टूट गया।अपनी कमियों को भी स्वीकार करें

गणेश जी भगवान हैं, वे चाहें तो अपनी शक्तियों से टूटे दांत

को ठीक भी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने संदेश दिया है कि

हमें अपनी कमियों की वजह से निराश नहीं होना चाहिए और

कमियों को भी स्वीकार करना चाहिए।